सोमवार, 22 नवंबर 2010

बिहार चुनाव-स्टार टीवी एक्ज़िट पोल- राजग को 148 सीट या 150 सीट -गफलत ही गफलत - हर मीडिया में अलग खबर -कैसे हुआ यह ?



एजेंसी एक -खबरें दो!! बड़ी नाइसाफी है ये!!
यही तो हुआ स्टार टीवी-ए सी नेल्सन द्वारा किये गये विधान सभा चुनाव के एक्ज़िट पोल( EXIT POLL) में.
आज सुबह जब टाइम्स ओफ इंडिया और हिन्दी हिन्दुस्तान -दो समाचार पत्रों मे इस एक्ज़िट पोल के हवाले से दी गयी दो अलग अलग संख्यायों को पाया तो एकबारगी मैं चोंक गया. आखिर दो इतने बड़े राष्ट्रीय दैनिक हैं और इतने महत्वपूर्ण चुनाव के सम्बन्ध में एक नामी टी वी चैनल द्वारा कराये गये सर्वेक्षण के गलत नतीजे कैसे छाप सकते हैं?

टाइम्स ओफ इंडिया में छपा : स्टार टीवी-ए सी नेल्सन के अनुसार - राजग को 148, लालू( राजद+) को 68, कांग्रेस को 14 व अन्य को 13 सीटें मिलने का अनुमान है. हिन्दी हिन्दुस्तान में इंन्ही को क्रमश: 150, 57 ,15 व 21 सीटं मिलने का अनुमान है.

एक बड़ा प्रश्न चिन्ह सामने आ गया था. क्या स्टार टीवी-ए सी नेल्सन ने इन दो अखबारों को अलग अलग संख्या बतायी है? आखिर यह छपाई की गलती या प्रूफ की गलती तो कतई नहीं हो सकती.

फिर मैने अन्य अखबारो ,टी वी चैनलों व सम्बन्धित वेबसाइट देखीं तो मामला उलझता ही गया.

जहां इंडिया टुडे व टेली ग्राफ ने वही संख्या छापी जो टाइम्स ओफ इंडिया ने छापी तो लगा कि शायद हिन्दी हिन्दुस्तान ने गलती की होगी. फिर www.electionaffairs.net नामक चुनाव सम्बन्धी साइट देखी तो वहां भी वही संख्या थी. अब तो लगभग तय कर लिया कि हिन्दी हिन्दुस्तान ने गलती की है.

फिर ज़ी न्यूज़ की साइट देखी तो लगा कि नहीं यहां तो मामला उल्टा था. यहां वही खबर थी जो हिन्दी हिन्दुस्तान ने छापी है. अब अंग्रेजी के डेक्कन हेराल्ड (Deccan Herald) और फिर द हिन्दू ( The Hindu) को देखा तो लगा कि हिन्दी हिन्दुस्तान सही था टाइम्स ओफ इंडिया गलत ?


अंत में भास्कर पत्र की वेबसाइट देखी क्यों कि इस सर्वेक्षण को स्टार टीवी- ए सी नील्सेन तथा भास्कर ने मिलकर करवाया था. यहां की संख्या थी - नीतिश-भाजपा राजग को 150, लालू राजद + को 57 , कांग्रेस को 15 व अन्य को 21 सीटं . इसे तो अधिकारिक माना जा सकता है .


अंत में नतीज़ा शून्य .यदि भास्कर की अधिकारिक सूचना को सही मानें तो क्या इंडिया टुडे, टाइम्स ओफ इंडिया ,टेलीग्राफ जैसे अखबार इतने लापरवाह हैं कि गलत संख्या छाप दें ?

या फिर सर्वेक्षण करनी वाली एजेंसियॉ ने ये गड़्बड़ घोटाला किया है ?

आपको उत्तर पता लगे तो बताना , मैं तो अभी भी भ्रमित ही हूं .

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

बिन्दु बिन्दु विचार

*देश की जनता सरकार व प्रधानमंत्री से जानना चाहती है कि हज़ारों करोड़ की रिश्वत आखिर किसकी ज़ेब में गयी ? जवाब दीजिये वरना इस्तीफा दीजिये.



*यदि उच्चतम न्यायालय व डा. सुब्रमण्यम स्वामी बीच में न आते तो कांग्रेस सरकार द्रमुक के साथ मिलकर 1,76,000 करोड़ गलीचे के नीचे बुहार देती. ये गलीचा आखिर किस-किसका है ?


* भारत के संविधान में संशोधन होना चाहिये. ए.राजा जैसे भ्रष्ट नेताओं पर सार्वजनिक रूप से मुकदमा चलाकर खुले-आम फांसी की सज़ा का प्रावधान होना चाहिये.


*वाह्!! एक तरफ भाजपा केन्द्र सरकार पर निशाने साध रही है, वहीं दूसरी तरफ उसकी तरफ भी भूमि घोटाले में उंगलियां उठ रही हैं. सूप बोले तो बोले .......

*जनता पार्टी नेता डा.सुब्रामण्यम स्वामी देश से भ्रष्टाचार मिटाने की मुहिम में एक राष्ट्रीय नायक के रूप में उभरे हैं. अभिनन्दन डा. स्वामी!!

*कांग्रेस भ्रष्टाचार की गंगोत्री है. कलमाडी,अशोक चव्हाण,राजा आदि तो प्यादे हैं. असली चढ़ावा तो किसी और देहरी पर पहुंच चुका है.पहेली है क्या?

*पूर्व सरसंघचालक सुदर्शन जी की ज़ुबान क्या फिसली ,कांग्रेसियों को सड़क पर नंगई और गुंडागर्दी करने का बहाना मिल गया. धत!

*सुदर्शन जी के वक्तव्य से अलग होकर भाजपा अपना पल्ला क्यों झाड़ रही है . किसी कोने से दबाब में है क्या ?

बुधवार, 25 अगस्त 2010

'आज तक' को फिरोज़पुर और फिरोज़ाबाद का फर्क़ नहीं मालूम

"बड़ा ही तेज़ चैनल है आज तक' - काफी समय से हम तो यही सुनते आये हैं. परंतु कभी कभी तेज़ी के चक्कर में सही और गलत का खयाल नहीं रहता.

कल रक्षाबन्धन का त्योहार था और सभी चैनल इस त्योहार से सम्बन्धित कुछ न कुछ 'विशेष' देने के फेर में थे. सबसे तेज़ चैनल 'आज तक' ने भी एक विशेष समाचार दिया. प्रात: 11 बजे के बुलेटिन को देखते हुए मैं चोंका. खबर ये थी कि फिल्म स्टार और सांसद राज बब्बर ने राखी का त्योहार मनाया ( इसमें विशेष क्या था, यह अलग विषय है). सांसद महोदय राखी का त्योहार मनाने अपने चुनाव क्षेत्र में गये. परंतु उनका तो संसदीय क्षेत्र फिरोज़ाबाद है ( उत्तर प्रदेश का नगर जो चूड़ी व कांच के लिये प्रसिद्ध है). मगर समाचार दिखाने की जल्दी में ( या अज्ञांनतावश) बताया गया फिरोज़पुर ( जो कि पंजाब में है)


सचमुच "बड़ा ही तेज़ चैनल है आज तक ".

मंगलवार, 15 जून 2010

एंडरसन के भव्य बंगले के पिछले दरवाजे से बी.एड. में प्रवेश दिलवायेगा " हिंदुस्तान"


है ना चौंकाने वाली खबर ? हिन्दी हिन्दुस्तान के रविवार 13 जून के अंक में वारेन एंड्रसन के अमेरिका स्थित भव्य बंगले को उ.प्र. सरकार के बी.एड. में प्रवेश से जोड़ दिया गया है.

खबर का इंट्रो बनाया गया है उत्तर प्रदेश सरकार के एक फैसले को ,जिसमे बी.एड .के लिये बेक डोर एंट्री रोकने की बात कही गयी है.

अब ज़रा हेडलाइन के नीचे बड़े हर्फों में लिखे मुख्य वाक्य को देखें ---

" अमेरिका के बेहद महंगे इलाके में भव्य बंगला है वारन एंडरसन का "
है कोई इन दोनों में सम्बन्ध ?

है पूरी खबर में कोई ज़िक्र वारन एंडरसन का ?

वारन एंडरसन का बी.एड. में दाखिले से क्या सम्बन्ध है ? कोई बतलायेगा प्लीईईएज़....


( उत्तर जानना है तो -दिल्ली से प्रकाशित हिन्दुस्तान 13 जून 2010 पेज़ 17 )


...जाने भी दो यारो.....

माफी नहीं, सर चाहिये

नहीं, इस बार माफी से काम नहीं चलेगा. दोषी चाहे कोई भी हो, गिरफ्तारी हो, समयबद्ध मुक़दमा चले और सज़ा होनी चाहिये


वारेन एंडर्सन को किसने भगाया ,किसने उससे रिश्वत ली और किसने देश वासियों के साथ धोखा किया? रोज़ाना नई नई जानकारिया सामने आ रही हैं . भोपाल के तत्कालीन डी एम , पुलिस अफसर ,हवाई जहाज़ का पायलट , किसी पार्टी का कोई प्रवक्ता, या किसी एन जी ओ का कोई सक्रिय सदस्य- इन सभी का कुछ भी बयान आये, इस बार कोई दोषी बचने ना पाये.

सबको मालूम है सी बी आई का कैसे दुरुपयोग किया जाता रहा है और (इसी मामले में नहीं,बल्कि अन्य मामलों में भी) किया भी गया. अब जनता का, मीडिया का इतना अधिक दबाब होना चाहिये कि सी बी आई अपने रीढ़ की हड्डी में बांस की खपच्ची लगा कर खडी हो और पूरे मुक़दमें के दोबारा सुनवाई की अपील सुप्रीम कोर्ट में करे.

अर्जुन सिंह मुंह खोलें या न खोलें , सबको हक़ीक़त पता है. पर अब अर्जुन सरीखों के मुंह को खोलने पर मज़बूर किया जाये. जो सरकारी अफसर यह कह कर बचना चाह रहा है कि वह क्या करता उसे तू ऊपर से आदेश थे, ऐसे सारे अफसरों को सरेआम खुली अदालत लगा कर नंगा किया जाये और ज़िम्मेदारी दोषी अफसरों पर भी डाली जाये .

प्रधान मंत्री ने मामले को ठंडा करने के लिये मंत्रिय़ों की एक समिति के हवाले कर दिया है . इस समिति की रपट क्या आयेगी यह भी सबको पहले से ही पता है. यदि किसी को बलि का बकरा बना कर कांग्रेस बचना चाहे और माफी नामा देश के सामने पेश करें तो इस माफी नामे को भी नकार दिया जाना चाहिये. हमें माफी नहीं ,सर चाहिये .
जो लोग अब ज़िन्दा नही हैं ,उन पर मुक़दमा तो नहीं चलाया जा सकता, परंतु यदि उनका दोष सामने आता है तो इसे इतिहास में दर्ज़ किया जाना ज़रूरी है .आने वाली पीढी को पता होना चाहिये कि पिछली पीढी में कैसे कैसे पापी हुए हैं.

यदि भारतीय लोकतंत्र कलंकित हुआ है तो लोकतंत्र के इस काले पन्ने को सबके सामने खुल कर रखे जाने की ज़रूरत है कि आने वाली पीढी सदैव सचेत रहे और लोकतंन्त्र फिर से दुबारा कलंकित न हो. अफसर शाही कलकित ना हों और न ही न्यायपालिका पर कोई आंच आये .

जनता के और मीडिया के दबाब से यह सम्भव है. यह दबाब बन रहा है. इसे और अधिक पुख्ता करने की ज़रूरत है .
वाह वाह !! नीतिश कुमार ! गुड़ खाओगे और गुलगुले से परहेज़ करोगे ?

इस सादगी पे कौन ना मर जाये ए खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
जी हां ,ये ज़ुबानी ज़मा-खर्च की लड़ाई किसे दिखा रहे हैं बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ? भाजपा के साथ गल्बहियां भी हैं और आंखों के डोरे भी लाल हैं ! क्या बात हैं? ये बाज़ीगरी ही तो इनकी राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है.

इधर भाजपा को आंख दिखायी ,प्रेस के सामने खूब गरियाये.उधर चुपके से .....लुधियाना की रैली में जो फोटो खींचा गया था फर्ज़ी था क्या? नहीं ना ? फिर हाय तौबा क्यों ? एक मोदी ( नरेन्द्र) को खरी खोटी सुनाई, दूसरे मोदी ( सुशील) को पुचकार दिया. इधर राजग ( NDA) के साथ सरकार भी चलाओगे और ‘सोने ‘ से खरे भी दिखना चाहोगे ?
जनता को बेवकूफ समझ रखा है क्या ?

अब समय आ गया है कि जनता ऐसे राजनीति के बाज़ीगरों को कटघरे में खड़े कर के सवाल पूछे. दुमुहीं राजनीति कतई बर्दाश्त नहीं होगी. फिर चाहे वह नीतिश हों या लालू या पासवान .... ( देखें अगली पोस्ट)

वाह लालूजी वाह!! नीतिश को गरियाओगे तो पासवान को कहां छिपाओगे ?

इस हमाम में सभी नंगे हैं . इधर नीतिश कुमार का मुलम्मा उतरा तो उधर लालू जी भी अपनी भद पिटवा गये.

एक प्रेस कांफ्रेंस के ज़रिये लालू जी ने भाजपा से दोस्ती के सवाल पर नीतिश को कटघरे में खड़ा करके गोला दागा. कहने लगे कि जरा भी शर्म है तो या तो भाजपा से अलग हो जायें या फिर भाजपा में शामिल हो जायें.
बहुत सही लालू जी. अच्छा प्वाइंट पकड़ा है आपने . हम भी सहमत हैं . पर सूप बोले तो बोले छलनी भी ...

लालू जी, आप तो राम विलास पासवान को राज्यसभा में भेज् रहे हैं. ये वही पासवान हैं ना जो राजग की सरकार में मंत्री थे. अब आपके सगे हैं ? यानी जो आपके साथ रहे वह धर्म-निरपेक्ष और जो आपके खिलाफ हो जाये वह साम्प्रदायिक.

कल तक तो पासवान साम्प्रदायिक थे और आपके लिये अछूत थे,( जैसे कि नीतिश कुमार आज हैं). अब आपकी गोटी उनके साथ फिट बैठ रही है ,तो उनका सारा दाग धुल गया? कौन सी गंगा में नहला दिये उन्हें आप ?

शुक्रवार, 14 मई 2010

जाति ही क्यों ? खाप, गोत्र, अल्ल,उपजाति, प्रजाति सभी कुछ पूछिये ना?

इस देश को पीछे धकेलने में और प्रगति की रफ्तार को कम करने में यदि कोई सोच,विचार, भावना ज़िम्मेदार है तो वह हमारा जातिवादी सोच है.
यह बात अनेक प्रबुद्ध विचारकों, समाज सुधारकों एवं समाजशास्त्रियों ने ठोक-बजा कर कही है. बार बार कही है.

किंतु हमारे राजनेताओं की मोटी बुद्धि में यह छोटी बात नहीं घुसती.

मेरा यह मानना है कि यदि 1990 में मंडल आयोग की शिफारिशों को लागू नहीं किया जाता तो देश अभी जहां है ,उससे कहीं आगे होता.

राजनेता व राजनैतिक दल आखिर क्यों जाति से चिपके रहने चाह्ते हैं ?
सीधी सी बात है कि जहां जहां जाति को एक चुनावी हथियार के रूप में आगे किया गया है ,वहां राजनेताओं की चान्दी ही रही है. जाति के पर्दे में उनके सभी गुनाह, नाकारापन, चालबाज़ियां,दुष्टत्ता, आदि छुप जाते हैं.

यही कारण है कि जनगणना के सवाल पर लगभग सभी दलों ने एक ही तुरही बजाई और जनगणना में जाति पूछे जाने का समर्थन किया.

मेरा उनको यही सुझाव है कि जनगणना में जाति तक ही सीमित क्यों रहें?

उपजाति, प्रजाति, खाप, गोत्र, अल्ल और जो भी कुछ ऐसी जानकारी हो सकती है जिससे हमारी एकता में फूट आये ,ज़रूर पूछी जाये ताकि आने वाले समय में देश छोटे छोटे कबीलों मे बंट जाये.
क्या कहा प्रगति ?विकास ?एकता? भाईचारा ?

अरे जाने भी दो यारो ..इन सबसे हमें क्या ?

हमॆं अपनी अपनी रोटियां सेंकने दो. देश जाये भाड़ में.

मंगलवार, 26 जनवरी 2010

फिर बांटी गयी रेवड़ियां

एक प्रश्न जिसका उत्तर हर वर्ष मांगा जाता है और नहीं मिलता वह है प्रति वर्ष गणतंत्र दिवस पर दिये जाने वाले पद्म पुरुस्कारों का ? आखिर क्या पैमाना होता है पद्म पुरुस्कारों का ?
फिर आई 26 जनवरी और फिर हुआ रेवड़ियां बांटने का सिलसिला . किसी को चोट ना पहुंचे परंतु फिर भी साल -दर- साल उठने वाले इस प्रश्न का कोई संतोषजंक उत्तर कहीं से भी नहीं आता.

पद्म विभूषण, पद्म भूषण एवम पद्म श्री उपाधियां दिये जाने की न तो प्रक्रिया पारदर्शी बनाई जाती है और नही ही ऐसे नामों पर विचार किया जाता है जिन्हे वास्तव में राष्ट्र द्वारा सम्मानित किया जाना चाहिये.

1977 में जनता पार्टी सरकार ने इन पद्म पुरुस्कारों पर रोक लगाकर एक अच्छा कदम उठाया था, परंतु बाद की सरकारों ने न्यायिक प्रक्रिया द्वारा फिर बहाल करवा लिया.

आखिर किसका प्रयोजन सिद्ध होता है इन पुरुस्कारों से?
ज़ाहिर है कि इसमें निज़ी स्वार्थ ,भाई -भतीजावाद ,'तू -मेरी कह मै-तेरी' अव्यावहारिक नीतियां ही ज़िम्मेदार हैं .

जैसा कि मैने पहले कहा किसी एक य दो नाम लेने से कोई लाभ नहीं ,ये पब्लिक है सब जानती है.

इन पुरुस्कारों पर रोक लगाना ही उचित होगा.