सोमवार, 21 सितंबर 2009

कामचोर कहीं का

विश्व भर के व्यावसायिक संगठनों में मानव संसाधन प्रबन्धक चाहते हैं कि प्रति-व्यक्ति उत्पादकता ( Productivity ) को अधिकतम स्तर पर ले जाया जाय ताकि प्रति-व्यक्ति शुद्ध लाभ भी बढे.

दूसरी तरफ तमाम अनुसन्धान कर्ताओं ने यह नतीज़ा निकाला है कि जब भी किसी संगठन में कर्मचारी ( अधिकारियों सहित) संतुष्ट होगा तभी वह जी भर के काम करेगा वरना नहीं. यही कारण है कि अनेक व्यावसायिक संगठन कर्मचारियों में 'संतोष' का स्तर नापने के लिये बाहरी विशेषज्ञों से सर्वेक्षण हेतु परामर्ष लेते हैं . इन्हें Employee Satisfaction Survey कहा जाता है.मैं भी ऐसे कई सर्वेक्षण भिन्न संगठनों के लिये कर चुका हूं.

अब गम्भीर बात तो हो गयी , अब ज़रा मन हल्का भी कर लिया जाये.

इन महाशय को ही लें जो इस सडक पर पेंट करने के काम पर लगाये गये थे . कामचोर थे और शायद असंतुष्ट भी ( शायद पगार समय पर न मिली हो या बौस ने पिछले दिनों झिडकी दी हो)
तो दिखा दिया कामचोरी का नतीज़ा- " ये काम मेरा नहीं है "




किसका है यह काम मेरे भाई ?

( यह चित्र मेरे एक पूर्व छात्र Mr. Suresh Babu Cheepuri ने भेजा है ,जो हैदराबाद में रहते हैं, साभार प्रस्तुत )

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

PWD का काम दिखता है. :)

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

ह्युमन रिसोर्स को मैं आज तक रिसोर्स डेवलपमेंट का कार्य करते तो देख नहीं पाया, जहाँ भी देखा हरेस्मेंट डेवलप करते देखा....... फिर इमानदार, मेहनती, कर्मठ कर्मचारियों में असंतोष क्यों न हो. संतुष्ट और मस्त तो वाही कर्मचारी दिखाते हैं जो चालू, स्मार्ट, प्रबंधन की आँखों में धुल झोकना भली भाति जानते हैं, मैनेजमेंट के चमचे हैं, आदि, आदि.....

इन सत्य को हम कब स्वीकार करेंगें

आज के दिन बोर्ड ऑफ़ डाईरेकटर्स कला टाप मैनेजमेंट पर, टाप मैनेजमेंट का अपने मिडल मैनेजमेंट पर, मिडल मैनेजमेंट का अपने स्टाफ पर, स्टाफ का अपने वर्कर पर विश्वास नहीं रह गया है, हर जगह निचे के लेवल से फीड बैक लिया जाने लगा है, न कहीं अनुशासन दिखता है, न कहीं टीम स्प्रिट............

सब अपनी ही देन है..........

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com