यह अपील दोनों हे पक्षों से है. धीरे धीरे ही मामला समझ में आया है क्यों कि पूरे दो दिन से अन्य कामों में व्यस्त था. ब्लोगवाणी बिलकुल एक निज़ी उद्यम है और इसे बिलकुल अपने ढंग से चलाने की उन्हे पूरी छूट होने ही चाहिये. जब मामला बृहत्तर ( ब्लोगर ) समाज का हो जाता है ,तो ज़ाहिर है कि सरोकार भी निज़ी न होकर सामाजिक हो जाने चाहिये.
यदि किसी ब्लोगर को एक एग्ग्रीगेटर से कोई शिकायत है तो इसमें कोई बुराई नहीं. बात को सही सन्दर्भों में ही देखा जाना चाहिये. ब्लोगवाणी को इतना गुस्सा नहीं दिखाना चाहिये.
अनेक भाषाओं में ( विशेषकर अंग्रेज़ी में)इस प्रकार का कोई एग्रीगेटर नहीं है,जैसा हिन्दी में है. इससे ब्लोगिंग के प्रसार में बहुत मदद मिली है.
मुझे यह कहने में तनिक भी संकोच नहीं है कि हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार ,प्रसार व प्रगति में ब्लोगवाणी की भूमिका अद्वितीय है. मैने दो सिर्फ दो वर्ष पहले ही (हिन्दी) ब्लोगिंग शुरू की थी और इन दो वर्षों में मैने हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) का निरंतर विकास देखा है. सिर्फ इसमें ब्लोगरों की संख्या ही कई गुनी नहीं बल्कि तकनीक में भी ज़ोररदार सुधार हुआ है. अक्षरग्राम, नारद ,चिट्ठाजगत व ब्लोगवाणी ,इन चारों ने जो काम किया उसे कम करके नहीं आंका जा सकता. आज जो सर्वाधिक प्रयोग होने वाले दो एग्ग्रीगेटर हैं उनमें ब्लोगवाणी व चिट्ठाजगत ही हैं. मेरे पास आंकडे नहीं है लेकिन मेरा अन्दाज़ है कि ब्लोगवाणी अधिक लोकप्रिय है.दो वर्ष पहले मैने अपने ब्लोग पर सर्वेक्षण किया था ,तब 49% लोगों ने बताया था कि वह सिर्फ ब्लोगवाणी का ही प्रयोग करते है( देखें पूरी रपट )
मुझे याद है कि संतनगर ,ईस्ट ओफ कैलाश ,नई दिल्ली में लगभग दो वर्ष पहले एक ब्लोग्गर मीट हुई थी ( जो मेरे विचार से अब तक हुई सबसे महत्वपूर्ण हिन्दी ब्लोगर मीट थी) . वह ब्लोगवाणी के कार्यालय में हुई थी ( हालां कि इसका आयोजन तो कनाट प्लेस में था परंतु भीड़ बढने से स्थान परिवर्तित हुआ था). उस मीटिंग में भी ( दूसरे सन्दर्भ में)एग्ग्रीगेटर की भूमिका पर एक सार्थक बहस हुई थी. उस बैठक में -अफलातून, मसिजीवी, संजय बेंगाणी, नीलिमा, मैथिली शरण,घुघूति बासूति, पंगेबाज ( अरुन अरोरा),आलोक पुराणिक,शैलेश भारतवासी,सुनीता चोटिया, सृजनशिल्पी,काकेश,मोहिन्दर कुमार, नीरज, सुरेश यादव, जगदीश भाटिया ,(कई नाम भूल रहा हूं) जैसे प्रमुख चिट्ठाकार मौज़ूद थे. ( देखें मेरी एक रपट ) हालां कि उस समय भी हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) को लेकर ऐसे ही प्रश्न थे जो नारद /अक्षरग्राम /ब्लोगवाणी को लेकर उठे थे. उस समय बाज़ारवाद जैसे मुहावरे भी उछले थे. कमोबेश आज भी मुद्दे वैसे ही हैं . तर्क़ भी वही हैं.
ब्लोगवाणी या अन्य कोई भी सेवा या व्यापार ( जाकी रही भावना जैसी...) के इरादे से आता है तो उसका स्वागत होना चाहिये. यदि किसी के योगदन से हिन्दी को, या हिन्दी चिट्ठाकारी ( ब्लोगिंग) को लाभ पहुंचता है तो हमें शुद्ध अंत:करण से उसकी सराहना करना चाहिये.
कमियां हों तो बताना भी चाहिये. किसी को बुरा भी लगना नहीं चाहिये. लोकतंत्र में हर कोई कुछ भी कहने को स्वतंत्र है.
बात दिल पे नहीं लेनी चाहिये.
'पसन्द' को लेकर उठे प्रश्न ज़ायज़ हैं . ब्लोगवाणी को बुरा नहीं मानना चाहिये था. बस अपना स्पष्टीकरण दे देते. काफी होता . प्रश्नकर्ता की शंका भी मिट जाती.
लगता है कि ब्लोगवाणी ने इसे 'इमोशनलात्मक'बना दिया है.
आइये मैथिली जी व सिरिल जी को हम सब मनायें और ब्लोगवाणी को दुबारा चालू करवाने का प्रयास करें
फिर फिर से ....
5 वर्ष पहले
6 टिप्पणियां:
आज सुबह से ही मन बहुत दुखी हो गया है -ब्लागवाणी ने अपनी सेवायें बंद करने की घोषणा की है !यह उन गैर जिम्मेदार ब्लागरों के टुच्ची हरकतों की प्रतिक्रया का ही परिणाम है जिनकी आदत होती है जिसकी थाली में खाते है उसी में छेद करते हैं हद है !
आज सुबह से ही मन बहुत दुखी हो गया है -ब्लागवाणी ने अपनी सेवायें बंद करने की घोषणा की है !यह उन गैर जिम्मेदार ब्लागरों के टुच्ची हरकतों की प्रतिक्रया का ही परिणाम है जिनकी आदत होती है जिसकी थाली में खाते है उसी में छेद करते हैं हद है !
अरविन्द जी की बात से १००% सहमत |
इन गैर जिम्मेदार टुच्चे लोगो की इस घटिया हरकत का खामियाजा सबको भुगतना पड़ेगा | भगवान करे इन टुच्चो की नजर चिट्ठाजगत को न लगे |
बेहद अफसोसजनक, दुखद…चन्द विघ्नसंतोषियों का प्रयास सफल रहा. उन्हें बधाई और उनकी ओर से हमारी ब्लॉगवाणी से क्षमाप्रार्थना.
अफसोसजनक हादसा।
ब्लॉगिंग को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता है तो यह स्वतंत्रता हर क्षेत्र में होती है, फिर चाहे वह समाज सेवा हो या व्यवसाय।
यह ब्लॉगवाणी का अपना निर्णय था, शायद कुछ और बेहतर कर गुजरने के लिए।
अब तक ब्लॉगवाणी से मिला दुलार याद आता रहेगा। भविष्य की योजनाओं हेतु शुभकामनाएँ
बी एस पाबला
सुबह चाय पीते समय अखबार की आदत जैसे ही कम्प्यूटर खोलते ही ब्लॉगवाणी ओपन करने की आदत सी हो गई है। अब क्या करें?
हमने तो सोचा था कि भविष्य में ब्लॉगवाणी पसंद अंग्रेजी डिग जैसे ही हिन्दी ब्लोग की लोकप्रियता का मानदंड बन जाएगी परः
मेरे मन कछु और है कर्ता के कछु और ....
Man supposes God disposes .....
@ अरविन्द मिश्र जी
@शेखावत जी
@समीर लाल जी
@पाबला जी
@ अवधिया जी
ऐसा कुछ तो नहीं है कि निर्णय पर पुनर्विचार नहीं हो सकता.कुछ सुधी ब्लौगर बन्धु यदि प्रयास करें ,तो ब्लोगवाणी को एक बार और मनाया जा सकता है. जैसा कि मैने कहा, मामला थोडा गहरे अन्दर तक गया है.
किंतु ब्लोगवाणी की उपयोगिता व योगदान को नकारा नहीं जा सकता, भले ही इसमें कितनी भी कमियां क्यों न गिनायें.
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